| در داستان ابومنصور | ||
| يـــكـــي مـــهـــتـــري بــــود گــــردن فــــراز | بـــديـــن نـــامـــه چـــون دســـت كـــردم دراز | |
| خـــردمـــنـــد و بــــيــــدار و روشــــن روان | جـــوان بـــود و از گـــوهــــر پــــهــــلــــوان | |
| ســـخـــن گـــفـــتــــن خــــوب و آواي نــــرم | خـــــداونـــــد راي و خـــــداونـــــد شــــــرم | |
| كــه جــانــت ســخــن بــرگـــرايـــد هـــمـــي | مــرا گــفــت كــز مــن چـــه بـــايـــد هـــمـــي | |
| بـــكـــوشـــم نـــيـــازت نـــيـــارم بـــه كــــس | بــه چــيــزي كــه بــاشــد مـــرا دســـتـــرس | |
| كــه از بــاد نــامــد بــه مـــن بـــر نـــهـــيـــب | هــمــي داشــتــم چــون يــكــي تــازه ســـيـــب | |
| از آن نـــيـــك دل نـــامــــدار ارجــــمــــنــــد | بــه كـــيـــوان رســـيـــدم ز خـــاك نـــژنـــد | |
| كــريـــمـــي بـــدو يـــافـــتـــه زيـــب و فـــر | به چـشـمـش هـمـان خـاك و هـم سـيـم و زر | |
| جــــوانــــمـــــرد بـــــود و وفـــــادار بـــــود | ســراســر جــهــان پـــيـــش او خـــوار بـــود | |
| چـــو در بـــاغ ســـرو ســـهـــي از چــــمــــن | چــنــان نــامــور گـــمـــشـــد از انـــجـــمـــن | |
| بـــه دســـت نـــهـــنـــگـــان مـــردم كــــشــــان | نــه زو زنــده بــيــنـــم نـــه مـــرده نـــشـــان | |
| دريـــغ آن كـــيـــي بـــرز و بــــالــــاي شــــاه | دريـــغ آن كـــمـــربـــنـــد و آن گــــردگــــاه | |
| روان لـــرز لـــرزان بــــه كــــردار بــــيــــد | گــــرفــــتــــار زو دل شــــده نــــاامـــــيـــــد | |
| ز كـــــــژي روان ســــــــوي داد آوريــــــــم | يــــكــــي پــــنــــد آن شــــاه يـــــاد آوريـــــم | |
| گــرت گــفــتــه آيــد بــه شــاهـــان ســـپـــار | مــرا گــفــت كــايــن نــامـــه ي شـــهـــريـــار | |
Thursday, September 24, 2009
آغاز نامه - در داستان ابومنصور
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